Tuesday, November 18, 2008

भाग 22

अध्याय 22
शब्द-ज्ञान
1.पर्यायवाची शब्द-
किसी शब्द-विशेष के लिए प्रयुक्त समानार्थक शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहते हैं। यद्यपि पर्यायवाची शब्द समानार्थी होते हैं किन्तु भाव में एक-दूसरे से किंचित भिन्न होते हैं।1.अमृत- सुधा, सोम, पीयूष, अमिय।2.असुर- राक्षस, दैत्य, दानव, निशाचर।3.अग्नि- आग, अनल, पावक, वह्नि।4.अश्व- घोड़ा, हय, तुरंग, बाजी।5.आकाश- गगन, नभ, आसमान, व्योम, अंबर।6.आँख- नेत्र, दृग, नयन, लोचन।7.इच्छा- आकांक्षा, चाह, अभिलाषा, कामना।8.इंद्र- सुरेश, देवेंद्र, देवराज, पुरंदर।9.ईश्वर- प्रभु, परमेश्वर, भगवान, परमात्मा।10.कमल- जलज, पंकज, सरोज, राजीव, अरविन्द।11.गरमी- ग्रीष्म, ताप, निदाघ, ऊष्मा।12.गृह- घर, निकेतन, भवन, आलय।13.गंगा- सुरसरि, त्रिपथगा, देवनदी, जाह्नवी, भागीरथी।14.चंद्र- चाँद, चंद्रमा, विधु, शशि, राकेश।15.जल- वारि, पानी, नीर, सलिल, तोय।16.नदी- सरिता, तटिनी, तरंगिणी, निर्झरिणी।17.पवन- वायु, समीर, हवा, अनिल।18.पत्नी- भार्या, दारा, अर्धागिनी, वामा।19.पुत्र- बेटा, सुत, तनय, आत्मज।20.पुत्री-बेटी, सुता, तनया, आत्मजा।21.पृथ्वी- धरा, मही, धरती, वसुधा, भूमि, वसुंधरा।22.पर्वत- शैल, नग, भूधर, पहाड़।23.बिजली- चपला, चंचला, दामिनी, सौदामनी।24.मेघ- बादल, जलधर, पयोद, पयोधर, घन।25.राजा- नृप, नृपति, भूपति, नरपति।26.रजनी- रात्रि, निशा, यामिनी, विभावरी।27.सर्प- सांप, अहि, भुजंग, विषधर।28.सागर- समुद्र, उदधि, जलधि, वारिधि।29.सिंह- शेर, वनराज, शार्दूल, मृगराज।30.सूर्य- रवि, दिनकर, सूरज, भास्कर।31.स्त्री- ललना, नारी, कामिनी, रमणी, महिला।32.शिक्षक- गुरु, अध्यापक, आचार्य, उपाध्याय।33.हाथी- कुंजर, गज, द्विप, करी, हस्ती।
2.अनेक शब्दों के लिए एक शब्द-
1
जिसे देखकर डर (भय) लगे
डरावना, भयानक
2
जो स्थिर रहे
स्थावर
3
ज्ञान देने वाली
ज्ञानदा
4
भूत-वर्तमान-भविष्य को देखने (जानने) वाले
त्रिकालदर्शी
5
जानने की इच्छा रखने वाला
जिज्ञासु
6
जिसे क्षमा न किया जा सके
अक्षम्य
7
पंद्रह दिन में एक बार होने वाला
पाक्षिक
8
अच्छे चरित्र वाला
सच्चरित्र
9
आज्ञा का पालन करने वाला
आज्ञाकारी
10
रोगी की चिकित्सा करने वाला
चिकित्सक
11
सत्य बोलने वाला
सत्यवादी
12
दूसरों पर उपकार करने वाला
उपकारी
13
जिसे कभी बुढ़ापा न आये
अजर
14
दया करने वाला
दयालु
15
जिसका आकार न हो
निराकार
16
जो आँखों के सामने हो
प्रत्यक्ष
17
जहाँ पहुँचा न जा सके
अगम, अगम्य
18
जिसे बहुत कम ज्ञान हो, थोड़ा जानने वाला
अल्पज्ञ
19
मास में एक बार आने वाला
मासिक
20
जिसके कोई संतान न हो
निस्संतान
21
जो कभी न मरे
अमर
22
जिसका आचरण अच्छा न हो
दुराचारी
23
जिसका कोई मूल्य न हो
अमूल्य
24
जो वन में घूमता हो
वनचर
25
जो इस लोक से बाहर की बात हो
अलौकिक
26
जो इस लोक की बात हो
लौकिक
27
जिसके नीचे रेखा हो
रेखांकित
28
जिसका संबंध पश्चिम से हो
पाश्चात्य
29
जो स्थिर रहे
स्थावर
30
दुखांत नाटक
त्रासदी
31
जो क्षमा करने के योग्य हो
क्षम्य
32
हिंसा करने वाला
हिंसक
33
हित चाहने वाला
हितैषी
34
हाथ से लिखा हुआ
हस्तलिखित
35
सब कुछ जानने वाला
सर्वज्ञ
36
जो स्वयं पैदा हुआ हो
स्वयंभू
37
जो शरण में आया हो
शरणागत
38
जिसका वर्णन न किया जा सके
वर्णनातीत
39
फल-फूल खाने वाला
शाकाहारी
40
जिसकी पत्नी मर गई हो
विधुर
41
जिसका पति मर गया हो
विधवा
42
सौतेली माँ
विमाता
43
व्याकरण जाननेवाला
वैयाकरण
44
रचना करने वाला
रचयिता
45
खून से रँगा हुआ
रक्तरंजित
46
अत्यंत सुन्दर स्त्री
रूपसी
47
कीर्तिमान पुरुष
यशस्वी
48
कम खर्च करने वाला
मितव्ययी
49
मछली की तरह आँखों वाली
मीनाक्षी
50
मयूर की तरह आँखों वाली
मयूराक्षी
51
बच्चों के लिए काम की वस्तु
बालोपयोगी
52
जिसकी बहुत अधिक चर्चा हो
बहुचर्चित
53
जिस स्त्री के कभी संतान न हुई हो
वंध्या (बाँझ)
54
फेन से भरा हुआ
फेनिल
55
प्रिय बोलने वाली स्त्री
प्रियंवदा
56
जिसकी उपमा न हो
निरुपम
57
जो थोड़ी देर पहले पैदा हुआ हो
नवजात
58
जिसका कोई आधार न हो
निराधार
59
नगर में वास करने वाला
नागरिक
60
रात में घूमने वाला
निशाचर
61
ईश्वर पर विश्वास न रखने वाला
नास्तिक
62
मांस न खाने वाला
निरामिष
63
बिलकुल बरबाद हो गया हो
ध्वस्त
64
जिसकी धर्म में निष्ठा हो
धर्मनिष्ठ
65
देखने योग्य
दर्शनीय
66
बहुत तेज चलने वाला
द्रुतगामी
67
जो किसी पक्ष में न हो
तटस्थ
68
तत्त्त्तव को जानने वाला
तत्त्त्तवज्ञ
69
तप करने वाला
तपस्वी
70
जो जन्म से अंधा हो
जन्मांध
71
जिसने इंद्रियों को जीत लिया हो
जितेंद्रिय
72
चिंता में डूबा हुआ
चिंतित
73
जो बहुत समय कर ठहरे
चिरस्थायी
74
जिसकी चार भुजाएँ हों
चतुर्भुज
75
हाथ में चक्र धारण करनेवाला
चक्रपाणि
76
जिससे घृणा की जाए
घृणित
77
जिसे गुप्त रखा जाए
गोपनीय
78
गणित का ज्ञाता
गणितज्ञ
79
आकाश को चूमने वाला
गगनचुंबी
80
जो टुकड़े-टुकड़े हो गया हो
खंडित
818
आकाश में उड़ने वाला
नभचर
82
तेज बुद्धिवाला
कुशाग्रबुद्धि
83
कल्पना से परे हो
कल्पनातीत
84
जो उपकार मानता है
कृतज्ञ
85
किसी की हँसी उड़ाना
उपहास
86
ऊपर कहा हुआ
उपर्युक्त
87
ऊपर लिखा गया
उपरिलिखित
88
जिस पर उपकार किया गया हो
उपकृत
89
इतिहास का ज्ञाता
अतिहासज्ञ
90
आलोचना करने वाला
आलोचक
91
ईश्वर में आस्था रखने वाला
आस्तिक
92
बिना वेतन का
अवैतनिक
93
जो कहा न जा सके
अकथनीय
94
जो गिना न जा सके
अगणित
95
जिसका कोई शत्रु ही न जन्मा हो
अजातशत्रु
96
जिसके समान कोई दूसरा न हो
अद्वितीय
97
जो परिचित न हो
अपरिचित
98
जिसकी कोई उपमा न हो
अनुपम3.विपरीतार्थक (विलोम शब्द)
शब्द
विलोम
शब्द
विलोम
शब्द
विलोम
अथ
इति
आविर्भाव
तिरोभाव
आकर्षण
विकर्षण
आमिष
निरामिष
अभिज्ञ
अनभिज्ञ
आजादी
गुलामी
अनुकूल
प्रतिकूल
आर्द्र
शुष्क
अनुराग
विराग
आहार
निराहार
अल्प
अधिक
अनिवार्य
वैकल्पिक
अमृत
विष
अगम
सुगम
अभिमान
नम्रता
आकाश
पाताल
आशा
निराशा
अर्थ
अनर्थ
अल्पायु
दीर्घायु
अनुग्रह
विग्रह
अपमान
सम्मान
आश्रित
निराश्रित
अंधकार
प्रकाश
अनुज
अग्रज
अरुचि
रुचि
आदि
अंत
आदान
प्रदान
आरंभ
अंत
आय
व्यय
अर्वाचीन
प्राचीन
अवनति
उन्नति
कटु
मधुर
अवनी
अंबर
क्रिया
प्रतिक्रिया
कृतज्ञ
कृतघ्न
आदर
अनादर
कड़वा
मीठा
आलोक
अंधकार
क्रुद्ध
शान्त
उदय
अस्त
क्रय
विक्रय
आयात
निर्यात
कर्म
निष्कर्म
अनुपस्थित
उपस्थित
खिलना
मुरझाना
आलस्य
स्फूर्ति
खुशी
दुख, गम
आर्य
अनार्य
गहरा
उथला
अतिवृष्टि
अनावृष्टि
गुरु
लघु
आदि
अनादि
जीवन
मरण
इच्छा
अनिच्छा
गुण
दोष
इष्ट
अनिष्ट
गरीब
अमीर
इच्छित
अनिच्छित
घर
बाहर
इहलोक
परलोक
चर
अचर
उपकार
अपकार
छूत
अछूत
उदार
अनुदार
जल
थल
उत्तीर्ण
अनुत्तीर्ण
जड़
चेतन
उधार
नकद
जीवन
मरण
उत्थान
पतन
जंगम
स्थावर
उत्कर्ष
अपकर्ष
उत्तर
दक्षिण
जटिल
सरस
गुप्त
प्रकट
एक
अनेक
तुच्छ
महान
ऐसा
वैसा
दिन
रात
देव
दानव
दुराचारी
सदाचारी
मानवता
दानवता
धर्म
अधर्म
महात्मा
दुरात्मा
धीर
अधीर
मान
अपमान
धूप
छाँव
मित्र
शत्रु
नूतन
पुरातन
मधुर
कटु
नकली
असली
मिथ्या
सत्य
निर्माण
विनाश
मौखिक
लिखित
आस्तिक
नास्तिक
मोक्ष
बंधन
निकट
दूर
रक्षक
भक्षक
निंदा
स्तुति
पतिव्रता
कुलटा
राजा
रंक
पाप
पुण्य
राग
द्वेष
प्रलय
सृष्टि
रात्रि
दिवस
पवित्र
अपवित्र
लाभ
हानि
विधवा
सधवा
प्रेम
घृणा
विजय
पराजय
प्रश्न
उत्तर
पूर्ण
अपूर्ण
वसंत
पतझर
परतंत्र
स्वतंत्र
विरोध
समर्थन
बाढ़
सूखा
शूर
कायर
बंधन
मुक्ति
शयन
जागरण
बुराई
भलाई
शीत
उष्ण
भाव
अभाव
स्वर्ग
नरक
मंगल
अमंगल
सौभाग्य
दुर्भाग्य
स्वीकृत
अस्वीकृत
शुक्ल
कृष्ण
हित
अहित
साक्षर
निरक्षर
स्वदेश
विदेश
हर्ष
शोक
हिंसा
अहिंसा
स्वाधीन
पराधीन
क्षणिक
शाश्वत
साधु
असाधु
ज्ञान
अज्ञान
सुजन
दुर्जन
शुभ
अशुभ
सुपुत्र
कुपुत्र
सुमति
कुमति
सरस
नीरस
सच
झूठ
साकार
निराकार
श्रम
विश्राम
स्तुति
निंदा
विशुद्ध
दूषित
सजीव
निर्जीव
विषम
सम
सुर
असुर
विद्वान
मूर्ख
4.एकार्थक प्रतीत होने वाले शब्द-
1.अस्त्र- जो हथियार हाथ से फेंककर चलाया जाए। जैसे-बाण।शस्त्र- जो हथियार हाथ में पकड़े-पकड़े चलाया जाए। जैसे-कृपाण।2.अलौकिक- जो इस जगत में कठिनाई से प्राप्त हो। लोकोत्तर।अस्वाभाविक- जो मानव स्वभाव के विपरीत हो।असाधारण- सांसारिक होकर भी अधिकता से न मिले। विशेष।3. अमूल्य- जो चीज मूल्य देकर भी प्राप्त न हो सके।बहुमूल्य- जिस चीज का बहुत मूल्य देना पड़ा।4. आनंद- खुशी का स्थायी और गंभीर भाव।आह्लाद- क्षणिक एवं तीव्र आनंद।उल्लास- सुख-प्राप्ति की अल्पकालिक क्रिया, उमंग।प्रसन्नता-साधारण आनंद का भाव।5.ईर्ष्या- दूसरे की उन्नति को सहन न कर सकना।डाह-ईर्ष्यायुक्त जलन।द्वेष- शत्रुता का भाव।स्पर्धा- दूसरों की उन्नति देखकर स्वयं उन्नति करने का प्रयास करना।6.अपराध- सामाजिक एवं सरकारी कानून का उल्लंघन।पाप- नैतिक एवं धार्मिक नियमों को तोड़ना।7.अनुनय-किसी बात पर सहमत होने की प्रार्थना।विनय- अनुशासन एवं शिष्टतापूर्ण निवेदन।आवेदन-योग्यतानुसार किसी पद के लिए कथन द्वारा प्रस्तुत होना।प्रार्थना- किसी कार्य-सिद्धि के लिए विनम्रतापूर्ण कथन।8.आज्ञा-बड़ों का छोटों को कुछ करने के लिए आदेश।अनुमति-प्रार्थना करने पर बड़ों द्वारा दी गई सहमति।9.इच्छा- किसी वस्तु को चाहना।उत्कंठा- प्रतीक्षायुक्त प्राप्ति की तीव्र इच्छा।आशा-प्राप्ति की संभावना के साथ इच्छा का समन्वय।स्पृहा-उत्कृष्ट इच्छा।10.सुंदर- आकर्षक वस्तु।चारु- पवित्र और सुंदर वस्तु।रुचिर-सुरुचि जागृत करने वाली सुंदर वस्तु।मनोहर- मन को लुभाने वाली वस्तु।11.मित्र- समवयस्क, जो अपने प्रति प्यार रखता हो।सखा-साथ रहने वाला समवयस्क।सगा-आत्मीयता रखने वाला।सुह्रदय-सुंदर ह्रदय वाला, जिसका व्यवहार अच्छा हो।12.अंतःकरण- मन, चित्त, बुद्धि, और अहंकार की समष्टि।चित्त- स्मृति, विस्मृति, स्वप्न आदि गुणधारी चित्त।मन- सुख-दुख की अनुभूति करने वाला।13.महिला- कुलीन घराने की स्त्री।पत्नी- अपनी विवाहित स्त्री।स्त्री- नारी जाति की बोधक।14.नमस्ते- समान अवस्था वालो को अभिवादन।नमस्कार- समान अवस्था वालों को अभिवादन।प्रणाम- अपने से बड़ों को अभिवादन।अभिवादन- सम्माननीय व्यक्ति को हाथ जोड़ना।15.अनुज- छोटा भाई।अग्रज- बड़ा भाई।भाई- छोटे-बड़े दोनों के लिए।16.स्वागत- किसी के आगमन पर सम्मान।अभिनंदन- अपने से बड़ों का विधिवत सम्मान।17.अहंकार- अपने गुणों पर घमंड करना।अभिमान- अपने को बड़ा और दूसरे को छोटा समझना।दंभ- अयोग्य होते हुए भी अभिमान करना।18.मंत्रणा- गोपनीय रूप से परामर्श करना।परामर्श- पूर्णतया किसी विषय पर विचार-विमर्श कर मत प्रकट करना।
5.समोच्चरित शब्द-
1. अनल=आग अनिल=हवा, वायु2.उपकार=भलाई, भला करनाअपकार=बुराई, बुरा करना3.अन्न=अनाज अन्य=दूसरा4.अणु=कण अनु=पश्चात 5.ओर=तरफऔर=तथा6.असित=काला अशित=खाया हुआ 7.अपेक्षा=तुलना में उपेक्षा=निरादर, लापरवाही 8.कल=सुंदर, पुरजाकाल=समय9.अंदर=भीतर अंतर=भेद 10.अंक=गोद अंग=देह का भाग 11.कुल=वंशकूल=किनारा12.अश्व=घोड़ा अश्म=पत्थर 13.अलि=भ्रमरआली=सखी 14.कृमि=कीटकृषि=खेती15.अपचार=अपराध उपचार=इलाज 16.अन्याय=गैर-इंसाफी अन्यान्य=दूसरे-दूसरे 17.कृति=रचनाकृती=निपुण, परिश्रमी18.आमरण=मृत्युपर्यंत आभरण=गहना 19.अवसान=अंत आसान=सरल 20.कलि=कलियुग, झगड़ाकली=अधखिला फूल21.इतर=दूसरा इत्र=सुगंधित द्रव्य 22.क्रम=सिलसिला कर्म=काम 23.परुष=कठोरपुरुष=आदमी24.कुट=घर,किला कूट=पर्वत 25.कुच=स्तन कूच=प्रस्थान 26.प्रसाद=कृपाप्रासादा=महल27.कुजन=दुर्जन कूजन=पक्षियों का कलरव 28.गत=बीता हुआ गति=चाल 29.पानी=जलपाणि=हाथ30.गुर=उपाय गुरु=शिक्षक, भारी 31.ग्रह=सूर्य,चंद्र गृह=घर 32.प्रकार=तरहप्राकार=किला, घेरा33.चरण=पैर चारण=भाट 34.चिर=पुरानाचीर=वस्त्र 35.फन=साँप का फनफ़न=कला36.छत्र=छाया क्षत्र=क्षत्रिय,शक्ति 37.ढीठ=दुष्ट,जिद्दीडीठ=दृष्टि 38.बदन=देहवदन=मुख30.तरणि=सूर्य तरणी=नौका 40.तरंग=लहर तुरंग=घोड़ा 41.भवन=घरभुवन=संसार42.तप्त=गरम तृप्त=संतुष्ट 43.दिन=दिवस दीन=दरिद्र 44.भीति=भयभित्ति=दीवार45.दशा=हालत दिशा=तरफ़ 46.द्रव=तरल पदारअथ द्रव्य=धन 47.भाषण=व्याख्यानभीषण=भयंकर48.धरा=पृथ्वी धारा=प्रवाह 49.नय=नीति नव=नया 55.भरण=भरनाभ्रमण=घूमना50.निर्वाण=मोक्ष निर्माण=बनाना 51.निर्जर=देवता निर्झर=झरना 52.मत=रायमति=बुद्धि53.नेक=अच्छा नेकु=तनिक 54.पथ=राह पथ्य=रोगी का आहार 55.मद=मस्तीमद्य=मदिरा56.परिणाम=फल परिमाण=वजन 57.मणि=रत्न फणी=सर्प 58.मलिन=मैलाम्लान=मुरझाया हुआ59.मातृ=मातामात्र=केवल 60.रीति=तरीका रीता=खाली 61.राज=शासनराज=रहस्य62.ललित=सुंदर ललिता=गोपी 63.लक्ष्य=उद्देश्य लक्ष=लाख 64.वक्ष=छातीवृक्ष=पेड़65.वसन=वस्त्र व्यसन=नशा, आदत 66.वासना=कुत्सित विचार बास=गंध 67.वस्तु=चीजवास्तु=मकान68.विजन=सुनसान व्यजन=पंखा 60.शंकर=शिव संकर=मिश्रित 70.हिय=ह्रदयहय=घोड़ा71.शर=बाण सर=तालाब 72.शम=संयम सम=बराबर 73.चक्रवाक=चकवाचक्रवात=बवंडर74.शूर=वीर सूर=अंधा 75.सुधि=स्मरण सुधी=बुद्धिमान 76.अभेद=अंतर नहींअभेद्य=न टूटने योग्य77.संघ=समुदाय संग=साथ 78.सर्ग=अध्याय स्वर्ग=एक लोक 79.प्रणय=प्रेमपरिणय=विवाह80.समर्थ=सक्षम सामर्थ्य=शक्ति 81.कटिबंध=कमरबंधकटिबद्ध=तैयार 82.क्रांति=विद्रोहक्लांति=थकावट83.इंदिरा=लक्ष्मी इंद्रा=इंद्राणी
6.अनेकार्थक शब्द-
1.अक्षर= नष्ट न होने वाला, वर्ण, ईश्वर, शिव।2.अर्थ= धन, ऐश्वर्य, प्रयोजन, हेतु।3.आराम= बाग, विश्राम, रोग का दूर होना।4.कर= हाथ, किरण, टैक्स, हाथी की सूँड़।5.काल= समय, मृत्यु, यमराज।6.काम= कार्य, पेशा, धंधा, वासना, कामदेव।7.गुण= कौशल, शील, रस्सी, स्वभाव, धनुष की डोरी।8.घन= बादल, भारी, हथौड़ा, घना।9.जलज= कमल, मोती, मछली, चंद्रमा, शंख।10.तात= पिता, भाई, बड़ा, पूज्य, प्यारा, मित्र।11.दल= समूह, सेना, पत्ता, हिस्सा, पक्ष, भाग, चिड़ी।12.नग= पर्वत, वृक्ष, नगीना।13.पयोधर= बादल, स्तन, पर्वत, गन्ना।14.फल= लाभ, मेवा, नतीजा, भाले की नोक।15.बाल= बालक, केश, बाला, दानेयुक्त डंठल।16.मधु= शहद, मदिरा, चैत मास, एक दैत्य, वसंत।17.राग= प्रेम, लाल रंग, संगीत की ध्वनि।18.राशि= समूह, मेष, कर्क, वृश्चिक आदि राशियाँ।19.लक्ष्य= निशान, उद्देश्य।20.वर्ण= अक्षर, रंग, ब्राह्मण आदि जातियाँ।21.सारंग= मोर, सर्प, मेघ, हिरन, पपीहा, राजहंस, हाथी, कोयल, कामदेव, सिह, धनुष भौंरा, मधुमक्खी, कमल।22.सर= अमृत, दूध, पानी, गंगा, मधु, पृथ्वी, तालाब।23.क्षेत्र= देह, खेत, तीर्थ, सदाव्रत बाँटने का स्थान।24.शिव= भाग्यशाली, महादेव, श्रृगाल, देव, मंगल।25.हरि= हाथी, विष्णु, इंद्र, पहाड़, सिंह, घोड़ा, सर्प, वानर, मेढक, यमराज, ब्रह्मा, शिव, कोयल, किरण, हंस।
7.पशु-पक्षियों की बोलियाँ-
पशु
बोली
पशु
बोली
पशु
बोली
ऊँट
बलबलाना
कोयल
कूकना
गाय
रँभाना
चिडिया
चहचहाना
भैंस डकराना (रँभाना)
पपीहा
बकरी
मिमियाना
मोर
कुहकना
घोड़ा
हिनहिनाना
तोता
टैं-टैं करना
हाथी
चिघाड़ना
कौआ
काँव-काँव करना
साँप
फुफकारना
शेर
दहाड़ना
सारस
क्रें-क्रें करना
टिटहरी
टीं-टीं करना
कुत्ता
भौंकना
मक्खी
भिनभिनाना
8.कुछ जड़ पदार्थों की विशेष ध्वनियाँ या क्रियाएँ
जिह्वा
लपलपाना
दाँत
किटकिटाना
ह्रदय
धड़कना
पैर
पटकना
अश्रु
छलछलाना
घड़ी
टिक-टिक करना
पंख
फड़फड़ाना
तारे
जगमगाना
नौका
डगमगाना
मेघ
गरजना
9.कुछ सामान्य अशुद्धियाँ-
अशुद्ध
शुद्ध
अशुद्ध
शुद्ध
अशुद्ध
शुद्ध
अशुद्ध
शुद्ध
अगामी
आगामी
लिखायी
लिखाई
सप्ताहिक
साप्ताहिक
अलोकिक
अलौकिक
संसारिक
सांसारिक
क्यूँ
क्यों
आधीन
अधीन
हस्ताक्षेप
हस्तक्षेप
व्योहार
व्यवहार
बरात
बारात
उपन्यासिक
औपन्यासिक
क्षत्रीय
क्षत्रिय
दुनियां
दुनिया
तिथी
तिथि
कालीदास
कालिदास
पूरती
पूर्ति
अतिथी
अतिथि
नीती
नीति
गृहणी
गृहिणी
परिस्थित
परिस्थिति
आर्शिवाद
आशीर्वाद
निरिक्षण
निरीक्षण
बिमारी
बीमारी
पत्नि
पत्नी
शताब्दि
शताब्दी
लड़ायी
लड़ाई
स्थाई
स्थायी
श्रीमति
श्रीमती
सामिग्री
सामग्री
वापिस
वापस
प्रदर्शिनी
प्रदर्शनी
ऊत्थान
उत्थान
दुसरा
दूसरा
साधू
साधु
रेणू
रेणु
नुपुर
नूपुर
अनुदित
अनूदित
जादु
जादू
बृज
ब्रज
प्रथक
पृथक
इतिहासिक
ऐतिहासिक
दाइत्व
दायित्व
सेनिक
सैनिक
सैना
सेना
घबड़ाना
घबराना
श्राप
शाप
बनस्पति
वनस्पति
बन
वन
विना
बिना
बसंत
वसंत
अमावश्या
अमावस्या
प्रशाद
प्रसाद
हंसिया
हँसिया
गंवार
गँवार
असोक
अशोक
निस्वार्थ
निःस्वार्थ
दुस्कर
दुष्कर
मुल्यवान
मूल्यवान
सिरीमान
श्रीमान
महाअन
महान
नवम्
नवम
क्षात्र
छात्र
छमा
क्षमा
आर्दश
आदर्श
षष्टम्
षष्ठ
प्रंतु
परंतु
प्रीक्षा
परीक्षा
मरयादा
मर्यादा
दुदर्शा
दुर्दशा
कवित्री
कवयित्री
प्रमात्मा
परमात्मा
घनिष्ट
घनिष्ठ
राजभिषेक
राज्याभिषेक
पियास
प्यास
वितीत
व्यतीत
कृप्या
कृपा
व्यक्तिक
वैयक्तिक
मांसिक
मानसिक
समवाद
संवाद
संपति
संपत्ति
विषेश
विशेष
शाशन
शासन
दुःख
दुख
मूलतयः
मूलतः
पिओ
पियो
हुये
हुए
लीये
लिए
सहास
साहस
रामायन
रामायण
चरन
चरण
रनभूमि
रणभूमि
रसायण
रसायन
प्रान
प्राण
मरन
मरण
कल्यान
कल्याण
पडता
पड़ता
ढ़ेर
ढेर
झाडू
झाड़ू
मेंढ़क
मेढक
श्रेष्ट
श्रेष्ठ
षष्टी
षष्ठी
निष्टा
निष्ठा
सृष्ठि
सृष्टि
इष्ठ
इष्ट
स्वास्थ
स्वास्थ्य
पांडे
पांडेय
स्वतंत्रा
स्वतंत्रता
उपलक्ष
उपलक्ष्य
महत्व
महत्त्त्व
आल्हाद
आह्लाद
उज्वल
उज्जवल
व्यस्क
वयस्क

भाग 6

अध्याय 6
वचन
परिभाषा-शब्द के जिस रूप से उसके एक अथवा अनेक होने का बोध हो उसे वचन कहते हैं।हिन्दी में वचन दो होते हैं-1. एकवचन2. बहुवचन
एकवचन-
शब्द के जिस रूप से एक ही वस्तु का बोध हो, उसे एकवचन कहते हैं। जैसे-लड़का, गाय, सिपाही, बच्चा, कपड़ा, माता, माला, पुस्तक, स्त्री, टोपी बंदर, मोर आदि।
बहुवचन-
शब्द के जिस रूप से अनेकता का बोध हो उसे बहुवचन कहते हैं। जैसे-लड़के, गायें, कपड़े, टोपियाँ, मालाएँ, माताएँ, पुस्तकें, वधुएँ, गुरुजन, रोटियाँ, स्त्रियाँ, लताएँ, बेटे आदि।एकवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग(क) आदर के लिए भी बहुवचन का प्रयोग होता है। जैसे-(1) भीष्म पितामह तो ब्रह्मचारी थे।(2) गुरुजी आज नहीं आये।(3) शिवाजी सच्चे वीर थे।(ख) बड़प्पन दर्शाने के लिए कुछ लोग वह के स्थान पर वे और मैं के स्थान हम का प्रयोग करते हैं जैसे-(1) मालिक ने कर्मचारी से कहा, हम मीटिंग में जा रहे हैं।(2) आज गुरुजी आए तो वे प्रसन्न दिखाई दे रहे थे।(ग) केश, रोम, अश्रु, प्राण, दर्शन, लोग, दर्शक, समाचार, दाम, होश, भाग्य आदि ऐसे शब्द हैं जिनका प्रयोग बहुधा बहुवचन में ही होता है। जैसे-(1) तुम्हारे केश बड़े सुन्दर हैं।(2) लोग कहते हैं।बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग(क) तू एकवचन है जिसका बहुवचन है तुम किन्तु सभ्य लोग आजकल लोक-व्यवहार में एकवचन के लिए तुम का ही प्रयोग करते हैं जैसे-(1) मित्र, तुम कब आए।(2) क्या तुमने खाना खा लिया।(ख) वर्ग, वृंद, दल, गण, जाति आदि शब्द अनेकता को प्रकट करने वाले हैं, किन्तु इनका व्यवहार एकवचन के समान होता है। जैसे-(1) सैनिक दल शत्रु का दमन कर रहा है।(2) स्त्री जाति संघर्ष कर रही है।(ग) जातिवाचक शब्दों का प्रयोग एकवचन में किया जा सकता है। जैसे-(1) सोना बहुमूल्य वस्तु है।(2) मुंबई का आम स्वादिष्ट होता है।बहुवचन बनाने के नियम(1) अकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के अंतिम अ को एँ कर देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे-
एकवचन
बहुवचन
आँख
आँखें
बहन
बहनें
पुस्तक
पुस्तकें
सड़क
सड़के
गाय
गायें
बात
बातें(2) आकारांत पुल्लिंग शब्दों के अंतिम ‘आ’ को ‘ए’ कर देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे-
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
घोड़ा
घोड़े
कौआ
कौए
कुत्ता
कुत्ते
गधा
गधे
केला
केले
बेटा
बेटे(3) आकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के अंतिम ‘आ’ के आगे ‘एँ’ लगा देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे-
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
कन्या
कन्याएँ
अध्यापिका
अध्यापिकाएँ
कला
कलाएँ
माता
माताएँ
कविता
कविताएँ
लता
लताएँ(4) इकारांत अथवा ईकारांत स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में ‘याँ’ लगा देने से और दीर्घ ई को ह्रस्व इ कर देने से शब्द बहुवचन में बदल जाते हैं। जैसे-
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
बुद्धि
बुद्धियाँ
गति
गतियाँ
कली
कलियाँ
नीति
नीतियाँ
कॉपी
कॉपियाँ
लड़की
लड़कियाँ
थाली
थालियाँ
नारी
नारियाँ(5) जिन स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में या है उनके अंतिम आ को आँ कर देने से वे बहुवचन बन जाते हैं। जैसे-
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
गुड़िया
गुड़ियाँ
बिटिया
बिटियाँ
चुहिया
चुहियाँ
कुतिया
कुतियाँ
चिड़िया
चिड़ियाँ
खटिया
खटियाँ
बुढ़िया
बुढ़ियाँ
गैया
गैयाँ(6) कुछ शब्दों में अंतिम उ, ऊ और औ के साथ एँ लगा देते हैं और दीर्घ ऊ के साथन पर ह्रस्व उ हो जाता है। जैसे-
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
गौ
गौएँ
बहू
बहूएँ
वधू
वधूएँ
वस्तु
वस्तुएँ
धेनु
धेनुएँ
धातु
धातुएँ(7) दल, वृंद, वर्ग, जन लोग, गण आदि शब्द जोड़कर भी शब्दों का बहुवचन बना देते हैं। जैसे-
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
अध्यापक
अध्यापकवृंद
मित्र
मित्रवर्ग
विद्यार्थी
विद्यार्थीगण
सेना
सेनादल
आप
आप लोग
गुरु
गुरुजन
श्रोता
श्रोताजन
गरीब
गरीब लोग(8) कुछ शब्दों के रूप ‘एकवचन’ और ‘बहुवचन’ दोनो में समान होते हैं। जैसे-
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
क्षमा
क्षमा
नेता
नेता
जल
जल
प्रेम
प्रेम
गिरि
गिरि
क्रोध
क्रोध
राजा
राजा
पानी
पानीविशेष- (1) जब संज्ञाओं के साथ ने, को, से आदि परसर्ग लगे होते हैं तो संज्ञाओं का बहुवचन बनाने के लिए उनमें ‘ओ’ लगाया जाता है। जैसे-
एकवचन
बहुवचन
एकवचन
बहुवचन
लड़के को बुलाओ
लड़को को बुलाओ
बच्चे ने गाना गाया
बच्चों ने गाना गाया
नदी का जल ठंडा है
नदियों का जल ठंडा है
आदमी से पूछ लो
आदमियों से पूछ लो(2) संबोधन में ‘ओ’ जोड़कर बहुवचन बनाया जाता है। जैसे-बच्चों ! ध्यान से सुनो। भाइयों ! मेहनत करो। बहनो ! अपना कर्तव्य निभाओ।

भाग 5

अध्याय 5
संज्ञा के विकारक तत्व
जिन तत्वों के आधार पर संज्ञा (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण) का रूपांतर होता है वे विकारक तत्व कहलाते हैं।वाक्य में शब्दों की स्थिति के आधार पर ही उनमें विकार आते हैं। यह विकार लिंग, वचन और कारक के कारण ही होता है। जैसे-लड़का शब्द के चारों रूप- 1.लड़का, 2.लड़के, 3.लड़कों, 4.लड़को-केवल वचन और कारकों के कारण बनते हैं।लिंग- जिस चिह्न से यह बोध होता हो कि अमुक शब्द पुरुष जाति का है अथवा स्त्री जाति का वह लिंग कहलाता है।परिभाषा- शब्द के जिस रूप से किसी व्यक्ति, वस्तु आदि के पुरुष जाति अथवा स्त्री जाति के होने का ज्ञान हो उसे लिंग कहते हैं। जैसे-लड़का, लड़की, नर, नारी आदि। इनमें ‘लड़का’ और ‘नर’ पुल्लिंग तथा लड़की और ‘नारी’ स्त्रीलिंग हैं।हिन्दी में लिंग के दो भेद हैं-1. पुल्लिंग।2. स्त्रीलिंग।
1.पुल्लिंग-
जिन संज्ञा शब्दों से पुरुष जाति का बोध हो अथवा जो शब्द पुरुष जाति के अंतर्गत माने जाते हैं वे पुल्लिंग हैं। जैसे-कुत्ता, लड़का, पेड़, सिंह, बैल, घर आदि।
2.स्त्रीलिंग-
जिन संज्ञा शब्दों से स्त्री जाति का बोध हो अथवा जो शब्द स्त्री जाति के अंतर्गत माने जाते हैं वे स्त्रीलिंग हैं। जैसे-गाय, घड़ी, लड़की, कुरसी, छड़ी, नारी आदि।
पुल्लिंग की पहचान-
1. आ, आव, पा, पन न ये प्रत्यय जिन शब्दों के अंत में हों वे प्रायः पुल्लिंग होते हैं। जैसे- मोटा, चढ़ाव, बुढ़ापा, लड़कपन लेन-देन।2. पर्वत, मास, वार और कुछ ग्रहों के नाम पुल्लिंग होते हैं जैसे-विंध्याचल, हिमालय, वैशाख, सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, राहु, केतु (ग्रह)।3. पेड़ों के नाम पुल्लिंग होते हैं। जैसे-पीपल, नीम, आम, शीशम, सागौन, जामुन, बरगद आदि।4. अनाजों के नाम पुल्लिंग होते हैं। जैसे-बाजरा, गेहूँ, चावल, चना, मटर, जौ, उड़द आदि।5. द्रव पदार्थों के नाम पुल्लिंग होते हैं। जैसे-पानी, सोना, ताँबा, लोहा, घी, तेल आदि।6. रत्नों के नाम पुल्लिंग होते हैं। जैसे-हीरा, पन्ना, मूँगा, मोती माणिक आदि।7. देह के अवयवों के नाम पुल्लिंग होते हैं। जैसे-सिर, मस्तक, दाँत, मुख, कान, गला, हाथ, पाँव, होंठ, तालु, नख, रोम आदि।8. जल,स्थान और भूमंडल के भागों के नाम पुल्लिंग होते हैं। जैसे-समुद्र, भारत, देश, नगर, द्वीप, आकाश, पाताल, घर, सरोवर आदि।9. वर्णमाला के अनेक अक्षरों के नाम पुल्लिंग होते हैं। जैसे-अ,उ,ए,ओ,क,ख,ग,घ, च,छ,य,र,ल,व,श आदि।
स्त्रीलिंग की पहचान-
1. जिन संज्ञा शब्दों के अंत में ख होते है, वे स्त्रीलिंग कहलाते हैं। जैसे-ईख, भूख, चोख, राख, कोख, लाख, देखरेख आदि।2. जिन भाववाचक संज्ञाओं के अंत में ट, वट, या हट होता है, वे स्त्रीलिंग कहलाती हैं। जैसे-झंझट, आहट, चिकनाहट, बनावट, सजावट आदि।3. अनुस्वारांत, ईकारांत, ऊकारांत, तकारांत, सकारांत संज्ञाएँ स्त्रीलिंग कहलाती है। जैसे-रोटी, टोपी, नदी, चिट्ठी, उदासी, रात, बात, छत, भीत, लू, बालू, दारू, सरसों, खड़ाऊँ, प्यास, वास, साँस आदि।4. भाषा, बोली और लिपियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-हिन्दी, संस्कृत, देवनागरी, पहाड़ी, तेलुगु पंजाबी गुरुमुखी।5. जिन शब्दों के अंत में इया आता है वे स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-कुटिया, खटिया, चिड़िया आदि।6. नदियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती आदि।7. तारीखों और तिथियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-पहली, दूसरी, प्रतिपदा, पूर्णिमा आदि।8. पृथ्वी ग्रह स्त्रीलिंग होते हैं।9. नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-अश्विनी, भरणी, रोहिणी आदि।
शब्दों का लिंग-परिवर्तन
प्रत्यय
पुल्लिंग
स्त्रीलिंग

घोड़ा
घोड़ी
देव
देवी
दादा
दादी
लड़का
लड़की
ब्राह्मण
ब्राह्मणी
नर
नारी
बकरा
बकरी
इय
चूहा
चुहिया
चिड़ा
चिड़िया
बेटा
बिटिया
गुड्डा
गुड़िया
लोटा
लुटिया
इन
माली
मालिन
कहार
कहारिन
सुनार
सुनारिन
लुहार
लुहारिन
धोबी
धोबिन
नी
मोर
मोरनी
हाथी
हाथिन
सिंह
सिंहनी
आनी
नौकर
नौकरानी
चौधरी
चौधरानी
देवर
देवरानी
सेठ
सेठानी
जेठ
जेठानी
आइन
पंडित
पंडिताइन
ठाकुर
ठाकुराइन

बाल
बाला
सुत
सुता
छात्र
छात्रा
शिष्य
शिष्या
अक को इका करके
पाठक
पाठिका
अध्यापक
अध्यापिका
बालक
बालिका
लेखक
लेखिका
सेवक
सेविका
इनी (इणी)
तपस्वी
तपस्विनी
हितकारी
हितकारिनी
स्वामी
स्वामिनी
परोपकारी
परोपकारिनीकुछ विशेष शब्द जो स्त्रीलिंग में बिलकुल ही बदल जाते हैं।
पुल्लिंग
स्त्रीलिंग
पिता
माता
भाई
भाभी
नर
मादा
राजा
रानी
ससुर
सास
सम्राट
सम्राज्ञी
पुरुष
स्त्री
बैल
गाय
युवक
युवतीविशेष वक्तव्य- जो प्राणिवाचक सदा शब्द ही स्त्रीलिंग हैं अथवा जो सदा ही पुल्लिंग हैं उनके पुल्लिंग अथवा स्त्रीलिंग जताने के लिए उनके साथ ‘नर’ व ‘मादा’ शब्द लगा देते हैं। जैसे-
नित्य स्त्रीलिंग
पुल्लिंग
मक्खी
नर मक्खी
कोयल
नर कोयल
गिलहरी
नर गिलहरी
मैना
नर मैना
तितली
नर तितली
बाज
मादा बाज
खटमल
मादा खटमल
चील
नर चील
कछुआ
नर कछुआ
कौआ
नर कौआ
भेड़िया
मादा भेड़िया
उल्लू
मादा उल्लू
मच्छर
मादा मच्छर

भाग 4

अध्याय-4
पद-विचार
सार्थक वर्ण-समूह शब्द कहलाता है, पर जब इसका प्रयोग वाक्य में होता है तो वह स्वतंत्र नहीं रहता बल्कि व्याकरण के नियमों में बँध जाता है और प्रायः इसका रूप भी बदल जाता है। जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होता है तो उसे शब्द न कहकर पद कहा जाता है।हिन्दी में पद पाँच प्रकार के होते हैं-1. संज्ञा2. सर्वनाम3. विशेषण4. क्रिया5. अव्यय
1.संज्ञा-
किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु आदि तथा नाम के गुण, धर्म, स्वभाव का बोध कराने वाले शब्द संज्ञा कहलाते हैं। जैसे-श्याम, आम, मिठास, हाथी आदि।संज्ञा के प्रकार- संज्ञा के तीन भेद हैं-1. व्यक्तिवाचक संज्ञा।2. जातिवाचक संज्ञा।3. भाववाचक संज्ञा।
1.व्यक्तिवाचक संज्ञा-
जिस संज्ञा शब्द से किसी विशेष, व्यक्ति, प्राणी, वस्तु अथवा स्थान का बोध हो उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-जयप्रकाश नारायण, श्रीकृष्ण, रामायण, ताजमहल, कुतुबमीनार, लालकिला हिमालय आदि।
2.जातिवाचक संज्ञा-
जिस संज्ञा शब्द से उसकी संपूर्ण जाति का बोध हो उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-मनुष्य, नदी, नगर, पर्वत, पशु, पक्षी, लड़का, कुत्ता, गाय, घोड़ा, भैंस, बकरी, नारी, गाँव आदि।
3.भाववाचक संज्ञा-
जिस संज्ञा शब्द से पदार्थों की अवस्था, गुण-दोष, धर्म आदि का बोध हो उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-बुढ़ापा, मिठास, बचपन, मोटापा, चढ़ाई, थकावट आदि।विशेष वक्तव्य- कुछ विद्वान अंग्रेजी व्याकरण के प्रभाव के कारण संज्ञा शब्द के दो भेद और बतलाते हैं-1. समुदायवाचक संज्ञा।2. द्रव्यवाचक संज्ञा।
1.समुदायवाचक संज्ञा-
जिन संज्ञा शब्दों से व्यक्तियों, वस्तुओं आदि के समूह का बोध हो उन्हें समुदायवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-सभा, कक्षा, सेना, भीड़, पुस्तकालय दल आदि।
2.द्रव्यवाचक संज्ञा-
जिन संज्ञा-शब्दों से किसी धातु, द्रव्य आदि पदार्थों का बोध हो उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-घी, तेल, सोना, चाँदी,पीतल, चावल, गेहूँ, कोयला, लोहा आदि।इस प्रकार संज्ञा के पाँच भेद हो गए, किन्तु अनेक विद्वान समुदायवाचक और द्रव्यवाचक संज्ञाओं को जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत ही मानते हैं, और यही उचित भी प्रतीत होता है।भाववाचक संज्ञा बनाना- भाववाचक संज्ञाएँ चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं। जैसे-
1.जातिवाचक संज्ञाओं से-
दास दासतापंडित पांडित्य बंधु बंधुत्वक्षत्रिय क्षत्रियत्वपुरुष पुरुषत्व प्रभु प्रभुतापशु पशुता,पशुत्वब्राह्मण ब्राह्मणत्वमित्र मित्रताबालक बालकपनबच्चा बचपन नारी नारीत्व
2.सर्वनाम से-
अपना अपनापन, अपनत्व निज निजत्व,निजतापराया परायापन स्व स्वत्वसर्व सर्वस्वअहं अहंकारमम ममत्व,ममता
3.विशेषण से-
मीठा मिठास चतुर चातुर्य, चतुराईमधुर माधुर्य सुंदर सौंदर्य, सुंदरतानिर्बल निर्बलता सफेद सफेदीहरा हरियाली सफल सफलताप्रवीण प्रवीणता मैला मैलनिपुण निपुणता खट्टा खटास
4.क्रिया से-
खेलना खेल थकना थकावट लिखना लेख, लिखाईहँसना हँसीलेना-देना लेन-देनपढ़ना पढ़ाईमिलना मेलचढ़ना चढ़ाई मुसकाना मुसकानकमाना कमाई उतरना उतराई उड़ना उड़ानरहना-सहना रहन-सहन देखना-भालना देख-भाल

भाग;3

अध्याय-3
शब्द-विचार
परिभाषा- एक या अधिक वर्णों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि शब्द कहलाता है। जैसे- एक वर्ण से निर्मित शब्द-न (नहीं) व (और) अनेक वर्णों से निर्मित शब्द-कुत्ता, शेर,कमल, नयन, प्रासाद, सर्वव्यापी, परमात्मा।
शब्द-भेद
व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द-भेद-व्युत्पत्ति (बनावट) के आधार पर शब्द के निम्नलिखित तीन भेद हैं-1. रूढ़2. यौगिक3. योगरूढ़
1.रूढ़-
जो शब्द किन्हीं अन्य शब्दों के योग से न बने हों और किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हों तथा जिनके टुकड़ों का कोई अर्थ नहीं होता, वे रूढ़ कहलाते हैं। जैसे-कल, पर। इनमें क, ल, प, र का टुकड़े करने पर कुछ अर्थ नहीं हैं। अतः ये निरर्थक हैं।
2.यौगिक-
जो शब्द कई सार्थक शब्दों के मेल से बने हों,वे यौगिक कहलाते हैं। जैसे-देवालय=देव+आलय, राजपुरुष=राज+पुरुष, हिमालय=हिम+आलय, देवदूत=देव+दूत आदि। ये सभी शब्द दो सार्थक शब्दों के मेल से बने हैं।
3.योगरूढ़-
वे शब्द, जो यौगिक तो हैं, किन्तु सामान्य अर्थ को न प्रकट कर किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं। जैसे-पंकज, दशानन आदि। पंकज=पंक+ज (कीचड़ में उत्पन्न होने वाला) सामान्य अर्थ में प्रचलित न होकर कमल के अर्थ में रूढ़ हो गया है। अतः पंकज शब्द योगरूढ़ है। इसी प्रकार दश (दस) आनन (मुख) वाला रावण के अर्थ में प्रसिद्ध है।
उत्पत्ति के आधार पर शब्द-भेद-
उत्पत्ति के आधार पर शब्द के निम्नलिखित चार भेद हैं-1. तत्सम- जो शब्द संस्कृत भाषा से हिन्दी में बिना किसी परिवर्तन के ले लिए गए हैं वे तत्सम कहलाते हैं। जैसे-अग्नि, क्षेत्र, वायु, रात्रि, सूर्य आदि।2. तद्भव- जो शब्द रूप बदलने के बाद संस्कृत से हिन्दी में आए हैं वे तद्भव कहलाते हैं। जैसे-आग (अग्नि), खेत(क्षेत्र), रात (रात्रि), सूरज (सूर्य) आदि।3. देशज- जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं वे देशज कहलाते हैं। जैसे-पगड़ी, गाड़ी, थैला, पेट, खटखटाना आदि।4. विदेशी या विदेशज- विदेशी जातियों के संपर्क से उनकी भाषा के बहुत से शब्द हिन्दी में प्रयुक्त होने लगे हैं। ऐसे शब्द विदेशी अथवा विदेशज कहलाते हैं। जैसे-स्कूल, अनार, आम, कैंची,अचार, पुलिस, टेलीफोन, रिक्शा आदि। ऐसे कुछ विदेशी शब्दों की सूची नीचे दी जा रही है।अंग्रेजी- कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल, बोतल आदि।फारसी- अनार,चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, चुगलखोर, गंदगी, चापलूसी आदि।अरबी- औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, कानून, खत, फकीर, रिश्वत, औरत, कैदी, मालिक, गरीब आदि।तुर्की- कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा, बहादुर आदि।पुर्तगाली- अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आदि।फ्रांसीसी- पुलिस, कार्टून, इंजीनियर, कर्फ्यू, बिगुल आदि।चीनी- तूफान, लीची, चाय, पटाखा आदि।यूनानी- टेलीफोन, टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा आदि।जापानी- रिक्शा आदि।
प्रयोग के आधार पर शब्द-भेद
प्रयोग के आधार पर शब्द के निम्नलिखित आठ भेद है-1. संज्ञा2. सर्वनाम3. विशेषण4. क्रिया5. क्रिया-विशेषण6. संबंधबोधक7. समुच्चयबोधक8. विस्मयादिबोधकइन उपर्युक्त आठ प्रकार के शब्दों को भी विकार की दृष्टि से दो भागों में बाँटा जा सकता है-1. विकारी2. अविकारी
1.विकारी शब्द-
जिन शब्दों का रूप-परिवर्तन होता रहता है वे विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे,हमें अच्छा, अच्छे खाता है, खाती है, खाते हैं। इनमें संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं।
2.अविकारी शब्द-
जिन शब्दों के रूप में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता है वे अविकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे-यहाँ, किन्तु, नित्य, और, हे अरे आदि। इनमें क्रिया-विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आदि हैं।अर्थ की दृष्टि से शब्द-भेदअर्थ की दृष्टि से शब्द के दो भेद हैं-1. सार्थक2. निरर्थक
1.सार्थक शब्द-
जिन शब्दों का कुछ-न-कुछ अर्थ हो वे शब्द सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे-रोटी, पानी, ममता, डंडा आदि।
2.निरर्थक शब्द-
जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता है वे शब्द निरर्थक कहलाते हैं। जैसे-रोटी-वोटी, पानी-वानी, डंडा-वंडा इनमें वोटी, वानी, वंडा आदि निरर्थक शब्द हैं।विशेष- निरर्थक शब्दों पर व्याकरण में कोई विचार नहीं किया जाता है।

भाग 2

अध्याय-2
वर्ण-विचार
परिभाषा-हिन्दी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वनि वर्ण कहलाती है। जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि।
वर्णमाला-
वर्णों के समुदाय को ही वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में 44 वर्ण हैं। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं-1. स्वर2. व्यंजन
1.स्वर-
जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता हो और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। ये संख्या में ग्यारह हैं-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं-1. ह्रस्व स्वर।2. दीर्घ स्वर।3. प्लुत स्वर।
1.ह्रस्व स्वर-
जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।
2.दीर्घ स्वर-
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।विशेष- दीर्घ स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीर्घ रूप नहीं समझना चाहिए। यहाँ दीर्घ शब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर किया गया है।
3.प्लुत स्वर-
जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है।
मात्राएँ
स्वरों के बदले हुए स्वरूप को मात्रा कहते हैं स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं-स्वर मात्राएँ शब्द अ × कमआ ा कामइ ि किसलयई ी खीरउ ु गुलाबऊ ू भूलऋ ृ तृणए े केशऐ ै हैओ ो चोरऔ ौ चौखटअ वर्ण (स्वर) की कोई मात्रा नहीं होती। व्यंजनों का अपना स्वरूप निम्नलिखित हैं-क् च् छ् ज् झ् त् थ् ध् आदि।अ लगने पर व्यंजनों के नीचे का (हल) चिह्न हट जाता है। तब ये इस प्रकार लिखे जाते हैं-क च छ ज झ त थ ध आदि।
व्यंजन
जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं। अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। ये संख्या में 33 हैं। इसके निम्नलिखित तीन भेद हैं-1. स्पर्श2. अंतःस्थ3. ऊष्म
1.स्पर्श-
इन्हें पाँच वर्गों में रखा गया है और हर वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं। हर वर्ग का नाम पहले वर्ग के अनुसार रखा गया है जैसे-कवर्ग- क् ख् ग् घ् ड़्चवर्ग- च् छ् ज् झ् ञ्टवर्ग- ट् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ्)तवर्ग- त् थ् द् ध् न्पवर्ग- प् फ् ब् भ् म्
2.अंतःस्थ-
ये निम्नलिखित चार हैं-य् र् ल् व्
3.ऊष्म-
ये निम्नलिखित चार हैं-श् ष् स् ह् वैसे तो जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप-परिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं। जैसे-क्ष=क्+ष अक्षर, ज्ञ=ज्+ञ ज्ञान, त्र=त्+र नक्षत्र कुछ लोग क्ष् त्र् और ज्ञ् को भी हिन्दी वर्णमाला में गिनते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं। अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।
अनुस्वार-
इसका प्रयोग पंचम वर्ण के स्थान पर होता है। इसका चिन्ह (ं) है। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।
विसर्ग-
इसका उच्चारण ह् के समान होता है। इसका चिह्न (:) है। जैसे-अतः, प्रातः।
चंद्रबिंदु-
जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और मुख दोनों से किया जाता है तब उसके ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा दिया जाता है।यह अनुनासिक कहलाता है। जैसे-हँसना, आँख। हिन्दी वर्णमाला में 11 स्वर तथा 33 व्यंजन गिनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़् अं तथा अः जोड़ने पर हिन्दी के वर्णों की कुल संख्या 48 हो जाती है।
हलंत-
जब कभी व्यंजन का प्रयोग स्वर से रहित किया जाता है तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है। हलयुक्त व्यंजन हलंत वर्ण कहलाता है। जैसे-विद्यां।
वर्णों के उच्चारण-स्थान
मुख के जिस भाग से जिस वर्ण का उच्चारण होता है उसे उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते हैं।
उच्चारण स्थान तालिका
क्रम
वर्ण
उच्चारण
श्रेणी
1.
अ आ क् ख् ग् घ् ड़् ह्
विसर्ग कंठ और जीभ का निचला भाग
कंठस्थ
2.
इ ई च् छ् ज् झ् ञ् य् श
तालु और जीभ
तालव्य
3.
ऋ ट् ठ् ड् ढ् ण् ड़् ढ़् र् ष्
मूर्धा और जीभ
मूर्धन्य
4.
त् थ् द् ध् न् ल् स्
दाँत और जीभ
दंत्य
5.
उ ऊ प् फ् ब् भ् म
दोनों होंठ
ओष्ठ्य
6.
ए ऐ
कंठ तालु और जीभ
कंठतालव्य
7.
ओ औ
दाँत जीभ और होंठ
कंठोष्ठ्य
8.
व्
दाँत जीभ और होंठ
दंतोष्

पाठ 1

अध्याय-1
1.भाषा, व्याकरण और बोली
परिभाषा- भाषा अभिव्यक्ति का एक ऐसा समर्थ साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों पर प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार जाना सकता है।संसार में अनेक भाषाएँ हैं। जैसे-हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी, बँगला,गुजराती,पंजाबी,उर्दू, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, फ्रैंच, चीनी, जर्मन इत्यादि।भाषा के प्रकार- भाषा दो प्रकार की होती है-1. मौखिक भाषा।2. लिखित भाषा।आमने-सामने बैठे व्यक्ति परस्पर बातचीत करते हैं अथवा कोई व्यक्ति भाषण आदि द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तो उसे भाषा का मौखिक रूप कहते हैं।जब व्यक्ति किसी दूर बैठे व्यक्ति को पत्र द्वारा अथवा पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं में लेख द्वारा अपने विचार प्रकट करता है तब उसे भाषा का लिखित रूप कहते हैं।
व्याकरण
मनुष्य मौखिक एवं लिखित भाषा में अपने विचार प्रकट कर सकता है और करता रहा है किन्तु इससे भाषा का कोई निश्चित एवं शुद्ध स्वरूप स्थिर नहीं हो सकता। भाषा के शुद्ध और स्थायी रूप को निश्चित करने के लिए नियमबद्ध योजना की आवश्यकता होती है और उस नियमबद्ध योजना को हम व्याकरण कहते हैं।परिभाषा- व्याकरण वह शास्त्र है जिसके द्वारा किसी भी भाषा के शब्दों और वाक्यों के शुद्ध स्वरूपों एवं शुद्ध प्रयोगों का विशद ज्ञान कराया जाता है।भाषा और व्याकरण का संबंध- कोई भी मनुष्य शुद्ध भाषा का पूर्ण ज्ञान व्याकरण के बिना प्राप्त नहीं कर सकता। अतः भाषा और व्याकरण का घनिष्ठ संबंध हैं वह भाषा में उच्चारण, शब्द-प्रयोग, वाक्य-गठन तथा अर्थों के प्रयोग के रूप को निश्चित करता है।व्याकरण के विभाग- व्याकरण के चार अंग निर्धारित किये गये हैं-1. वर्ण-विचार।2. शब्द-विचार।3. पद-विचार।4. वाक्य विचार।
बोली
भाषा का क्षेत्रीय रूप बोली कहलाता है। अर्थात् देश के विभिन्न भागों में बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है और किसी भी क्षेत्रीय बोली का लिखित रूप में स्थिर साहित्य वहाँ की भाषा कहलाता है।
लिपि
किसी भी भाषा के लिखने की विधि को ‘लिपि’ कहते हैं। हिन्दी और संस्कृत भाषा की लिपि का नाम देवनागरी है। अंग्रेजी भाषा की लिपि ‘रोमन’, उर्दू भाषा की लिपि फारसी, और पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी है।
साहित्य
ज्ञान-राशि का संचित कोश ही साहित्य है। साहित्य ही किसी भी देश, जाति और वर्ग को जीवंत रखने का- उसके अतीत रूपों को दर्शाने का एकमात्र साक्ष्य होता है। यह मानव की अनुभूति के विभिन्न पक्षों को स्पष्ट करता है और पाठकों एवं श्रोताओं के ह्रदय में एक अलौकिक अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति उत्पन्न करता है।

Sunday, August 10, 2008

Chapter1

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Thursday, July 24, 2008

Test

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